Home hindi poems #8-स्वार्थ
hindi poems

#8-स्वार्थ

घात लगाए बैठा है, इससे तू बच के रहना,
हावी हो जाएगा तुझ पर, किसी धोखे में तू न रहना,
सचेत किए देता हूँ अभी से, फिर किसी से न कहना,
घात लगाए बैठा है, इससे तू बच के रहना।

इससे तू बच के रहना, तुझ पर हावी हो जाएगा,
दब जाेगा नीचे तू, कुछ नहीं कर पाएगा,
तू दुनिया में कुछ भी करना, पर न करना स्वारथ,

सबसे चूकना पर न चूकना, करनें से परस्वारथ,
मुख से विष न निकले तेरे, बन्द न हो अमृत बहना,
घात लगाए बैठा है, स्वारथ से तू बच के रहना।


–>सम्पूर्ण कविता सूची<–


(Selfishness)

स्वार्थ हिंदी कविता

इस कविता के माध्यम से एक जीवन्त उदाहरण पेश करनें की कोशिश की गयी है। जिन्दगी की स्वार्थ जिस प्रकार से एक रुकावट की तरह कार्य करता है उससे निपटने के लिए निःस्वार्थ भाव से आशक्तों की मदद करना ही परम सेवा धर्म होता है। श्रीकृष्ण भगवान नें भी गीता में कहा है कि व्यक्ति को निःस्वार्थ भाव से अपने कर्म को करना चाहिए कभी भी फल की इच्छा से किया गया कार्य निःस्वार्थ भाव का नहीं हो सकता है।

Hindi Poem on selfishness

Poem on selfishness in hindi

Facebook link

बखानी हिन्दी कविता के फेसबुक पेज को पसंद और अनुसरण (Like and follow) जरूर करें । इसके लिये नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें-

Bakhani, मेरे दिल की आवाज – मेरी कलम collection of Hindi Kavita

Youtube chanel link

Like and subscribe Youtube Chanel

Bakhani hindi kavita मेरे दिल की आवाज मेरी कलम

Hindi Kavita on selfishness

Kavita on selfishness in hindi

#bakhani
#hindi poems

Total Page Visits: 1920 - Today Page Visits: 1

Author

jk namdeo

मैं समझ से परे। एकान्त वासी, अनुरागी, ऐकाकी जीवन, जिज्ञासी, मैं समझ से परे। दूजों संग संकोची, पर विश्वासी, कटु वचन संग, मृदुभाषी, मैं समझ से परे। भोगी विलासी, इक सन्यासी, परहित की रखता, इक मंसा सी मैं समझ से परे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Get 30% off your first purchase

X