#21-दृढ बनो

#21-दृढ बनो

  • Jan 07, 2018

निकला था अलि भ्रमर में, अंजानें मंजिल की खोज, दिल में आश लगाए भटके, मन में मंजिल पानें की सोंच, राह भटकते रात हुई वह, लौट पडे निज गृह को तेज, स्वप्न में भी मंजिल को ढूंढे, निकल पडे गृह को छोड, निकला था अनि भ्रमर में, अंजाने मंजिल की खोज। आश न छोडे चाह […]

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#20.किसान और प्रकृति

निर्बल दुर्बल खेतिहारी पर,सूखे की मार भारी है,पकी फसल पर वारिस पत्थर,और भी प्रलयंकारी है। वह झूल रहा है फंदो से,रब रूठ गया है बंदो से,ऐ रब अब तू सुन ले तेरे,बंदो पर संकट भारी है। चिडियों की चहक भी मन्द हुई,मुर्गों की बांग भी झूठी है,कहीं अति गर्मी बेमौसम बारिस,देखो प्रकृति हमसे रूठी है। […]

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#19.हैप्पी होली

#19.हैप्पी होली

  • Jan 07, 2018

इतिहास के पन्नों तक सिमट कर रह जाएगी यह होली। रंगो की वह होली अब फीकी फीकी सी है, सहमी इंसानियत हर पल दूजे से, न पता किधर से रोष ठगे, इक विकास न जाने कैसे, कारण दूजे का आक्रोश जगे, जो भाव रंगों में दिखते थे, कभी नभ रंग कर, चेहरे में वो दुःभाव, […]

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#18-सुन गौरैया कहाँ गई तू

  सुन गौरैया वर्षों पहले मेरा आंगन महकाती थी, मेरा बचपन फुदक तेरे संग, उछल कूद सिखाती थी, डालूं दाना आंगन में जितने, तू आ के चुंग जाती थी, मेरे आंगन का पेड सुनहरा, रहता तेरा सुन्दर बसेरा, सांझ ढले तू भी सो जाती, चहके मन मोहे जब होए सबेरा। ऐ गौरैया कहाँ गई तू, […]

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#17-महिला सशक्तिकरण

समाज की कुरीतियों से अब, लड़ना हमनें सीख लिया, फटेहाल समाज का मुह, सिलना हमनें सीख लिया, हक़ की हो जब बात तो, छीनना हमनें सीख लिया, इस बेदर्द समाज में खुलकर, जीना हमनें सीख लिया। कब तक यूँ दबी कुचली सी, हालत में रहेंगे, जमाने के डर नें सर, नीचे करा रखा था, डरा […]

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