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#31-पुलिस पर विश्वास

मन में दबा विश्वास आखिर झलक ही जाता है
संग किसी के घटना होती दौडा दौडा पुलिस को जाता है,
गुस्सा हो मन में कितना भी कितना भी वह बोले भ्रष्ट,
जब सर ठीकरा फूट पडे वह आप बीती पुलिस को जा के बताता है,
मन में दबा विश्वास आखिर झलक ही जाता है।

समाज खुद को कितना भी कह दे कि निडर वह रहता है,
जब तक पडे न सर पर आफत उल्टा सीधा बकता रहता है,
संसार में सर्वशक्तिमान बन, सर्वश्रेष्ठ खुद को कहता है,
पर जब सर पर आफत पडती, भाग पुलिस को आता है,
संग उसके जो गलत है होता जिम्मेदार पुलिस को ठहराता है,
मन में दबा विश्वास आखिर झलक ही जाता है।

घर में चोरी भागी छोरी छीना झपटी मार पिटाई,
जुँआ सुरा हत्या व्यभिचार छेड छाड अन्याय दबंगाई,
हर पल हर छण बिना विचार के जिम्मेदार पुलिस ठहराया जाता है,
जब कोई इस दौर से गुजरे, पुलिस पुलिस चिल्लाता है,
मन में दबा विश्वास आखिर झलक ही जाता है।


–>सम्पूर्ण कविता सूची<–


Hindi Poem on faith on police

Poem on faith on police in hindi

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Hindi Kavita on faith on police

Kavita on faith on police in hindi

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jk namdeo

मैं समझ से परे। एकान्त वासी, अनुरागी, ऐकाकी जीवन, जिज्ञासी, मैं समझ से परे। दूजों संग संकोची, पर विश्वासी, कटु वचन संग, मृदुभाषी, मैं समझ से परे। भोगी विलासी, इक सन्यासी, परहित की रखता, इक मंसा सी मैं समझ से परे।

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